महाभारत में वीरों कि एक जमात है, जब भी महाभारत की बात हो और इस काल में कौन कितना वीर था इसपर बहस होगी तब अलग अलग जिह्वा पर अलग अलग नाम होंगे, अर्जुन ,कर्ण , एकलव्य,भीष्म पितामह ,द्रोणाचार्य ,अश्वत्थामा, दुर्योधन, भीमसेन अभिमन्यु, जयद्रथ ,जरासंध ,श्री कृष्ण जैसे बड़े नाम का आना तो समान्य है,,
लेकिन महाभारत का एक ऐसा योद्धा जिसने अर्जुन से धनुर्विद्या सीखी तो श्री कृष्ण से रणनीति, पांडवो के लिए अपना जान न्योछावर करने के लिए हमेशा से तैयार रहने वाला
यूं तो सात्यकि नारायणी सेना का सेनापति था, चुकी दुर्योधन की ओर से नारायणी सेना के लड़ने की घोषणा हुई, सात्यकि ने उसके ओर से लड़ना ठीक ना समझा और अपने पद से त्याग करके पांडवों की ओर से युद्ध लड़े, कहा जाता है कि अर्जुन के अलावा कौरव सेना को सबसे ज्यादा नुकसान अगर कोई पहुंचाया तो वह सात्यकि ही था, वेदव्यास ने सात्यकि की वीरता का काफी बड़े रूप में महिमामंडन किया है, अपने बाणों से राधेया तक को विवश कर देने वाला सात्यकि युद्ध के 13 वे दिन जिस दिन जयद्रथ को मारा जाना था अर्जुन के साथ मिलकर कौरव के 11 अक्षौहिण सेना में से 7 अक्षौहिणी सेना को 1 दिन में नष्ट कर दिया।
सात्यकि पर श्री कृष्ण और अर्जुन का अटूट विश्वास भी था, जब भगवान श्री कृष्ण हस्तिनापुर में पांडव के शांति दूत बनकर गए तब उन्होंने अपने साथ केवल सात्यकि को ले गए थे। वह सात्यकि ही थे जिसने श्री कृष्ण को यह सूचना दी कि दुर्योधन उन्हें बंदी बनाने की योजना बना रहा है,
सात्यकि महाभारत के उन गिने-चुने योद्धाओं में से है जो युद्ध के आखिरी दिन तक लड़ते हुए जीवित रहा और बाद में यदुवंश का सेनापति का पद भी कई वर्षों तक संभाला।
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