एक बार तीन यात्री लम्बी दूरी की यात्रा करने के बाद थके हारे भूख से व्याकुल एक खाली मकान में पहुंचे। जहां खाने के लिए मात्र एक ही व्यक्ति के लिए पर्याप्त खाना था। तो तीनों ने आपसी सहमति से यह निर्णय लिया कि अभी सो जाते हैं कुछ समय के लिए क्योंकि थकान के चलते हुए गहरी निद्रा में विश्राम भी हो जाएगा। और उठने के बाद जो अच्छा सा स्वप्न सुनाएगा, वह खाना खा लेगा।
- सबसे पहले ईसाई पहलवान उठा और बताने लगा कि रात को उसने जीसस को सूली से उतारा और खुद उनकी जगह ले ली। और अब मुझे तो भूख प्यास कुछ नहीं महसूस हो रही है।
- दूसरा हमारा मुस्लिम भाई उठा और बोला कि मैं तो रात को हज यात्रा पूरी करता हुआ गहरी नींद में सोया रहा और पता ही नहीं चला कि कब आंख खुल गई।
- अंत में बिस्तर पर ही करवटें लेता हुआ उनकी बातें सुनता हुआ तीसरा हरियाणे का पहलवान उठा। और अंगड़ाईयां लेता हुआ वा वा करता हुआ बोलने लगा कि दोस्तो! मेरा तो बदन अभी बहुत दर्द कर रहा है। और पूछने पर कारण बताया कि रात को हनुमान जी आये और उनहोंने अपनी गदा से लगातार प्रहार करते हुए बोला कि खा खाना। खा खाना। खा खाना। और आप लोगों का धयान करते हुए जितनी मार खा सकता था, खाई। लेकिन बेबसी ने मुझे अंततः खाना खाने पर मजबूर कर ही दिया।
- लेकिन उससे पहले मैंने मित्र धर्म निभाते हुए आप दोनों को उठाने का बहुत प्रयास किया। लेकिन एक सूली पर लटका हुआ था और दूसरा हज यात्रा को गया हुआ था। इतना कहने के बाद उसने अपने लंगोट के अतिरिक्त सारे कपड़े उतार दिए और व्यायाम करना शुरू कर दिया।
- तो उसके सुढोल बदन को देखते हुए दोनों दोस्त भूखे प्यासे भी डर के मारे हुए उसके पैर दबाने में जुट गये। क्योंकि बेकार के स्वप्न रूपी तर्क वितर्क वास्तविक पहलवान के आगे नतमस्तक हो गये थे।
- तो यह ईश्वर का अस्तित्व न तो आस्था का विषय है और न तर्क वितर्क का। यह है समयानुसार आपके शारीरिक व बुद्धि बल का है। जो कि तीसरे पहलवान ने अपनाया।
- अब क्या आप ईश्वर के प्रति आस्था रखते हो? जी हां। ठीक है मित्र। बहुत अच्छी बात है। तो यह तर्क वितर्क में क्यूँ उलझे हुए हो?
- अब क्या आप ईश्वर के प्रति आस्था नहीं रखते हो? जी नहीं। ठीक है मित्र। बहुत अच्छी बात है। तो यह तर्क वितर्क में क्यूँ उलझे हुए हो?
- लिखने को बहुत कुछ है। लेकिन मैं भी ईश्वर के प्रति आस्था रखता हुआ इससे ज्यादा तर्क वितर्क करना नहीं चाहता। धन्यवाद
by bull/bear.com
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