कंपनियां अपने शेयर बायबैक मार्केट रेट से ऊंचे भाव पर क्यों करती हैं? शेयर बायबैक का उन्हे क्या फायदा मिलता है?

बाईबैक पर पहले क़ानूनी पक्ष रख देता, ताकि आगे समझने में आसानी होगी। वर्ष 2017 में श्री अरुण जेटली ने बजट में Dividend distribution tax (डी॰डी॰टी॰) के प्रावधान में बदलाव किया और डिवीडेंड देने वाली कम्पनी पर ग्रोस अमाउंट पर 15% का टैक्स लगाया। जिसकी वजह से कम्पनी का डिवीडेंड देना महँगा हो गया। तो कम्पनी ने मुनाफ़े से डिवीडेंड ना दे कर बाईबैक का रास्ता पकड़ा। [1]


आज के बजट में श्रीमती निर्मला सीतारमन ने बैकडोर को नियंत्रित करने के लियें बाईबैक पर भी 20% टैक्स का प्रावधान जोड़ दिया हैं [2]


ये डी॰डी॰टी॰ से बचने के लियें ही भारत में एक दम से बाईबैक अधिक होने लगे थे।


अब बाईबैक से होता क्या हैं इस उदाहरण से लिखता हूँ।


अगर एक कम्पनी के कुल शेयर की संख्या 100 हैं, और शेयर की क़ीमत कम्पनी की आमदनी 1000 हैं। और कम्पनी के पास कैश हैं 1000 तो प्रति शेयर आमदनी:


EPS = 1000 /100


= 10


अब अगर कम्पनी ने अपने आधे शेयर बाईबैक किये 12 रुपये से तो प्रति शेयर आमदनी होगी


EPS = 1000/ 50


= 20


और कम्पनी के पास कैश बचा 1000 - ( 12 * 50)


= 1000 - 600


= 400


अब ROA ( रिटर्न आन ऐसेट) होता हैं अर्निंग / ऐसेट:


तो बाईबैक से पहले , ROA = 1000/1000


ROA = 100 %


बाई बैक के बाद , ROA = 1000 / 400


ROA = 250 %


निष्कर्ष -


बाईबैक कम्पनी को टैक्स लाभ देता हैं ( ये आज के बजट में बाद बदल जायेगा)

कम्पनी के सूचनाक में सुधार होता हैं।

प्रति शेयर आमदनी में सुधार होता हैं जिसकी वजह से PE भी कम होता हैं।

बाईबैक प्रभावी तब होगा जब कम्पनी अधिक शेयर ख़रीद पाये, और वो सुनिश्चहित करने के लियें कम्पनी भविष्य की वृद्धि दर वास्तविक क़ीमत में जोड़ के ऑफ़र करती हैं ताकि जो लोग भविष्य के लियें होल्ड करते हैं वो भी बेचने का सोचें।


ये सभी मिल कर कम्पनी को एक बेहतर निवेश बनाते हैं। हालाँकि बाईबैक हमेशा विकल्प हैं ऐसा भी नहीं हैं। कई बार कम्पनी के लियें व्यापार को और बढ़ाने के अवसर नहीं होते तो कम्पनी अपने पैसे से शेयर बाईबैक करती हैं। इसके दो परिणाम होते हैं


अनुपयोगी कैश बैलेन्सशीट से निकल जाता हैं, कम्पनी का ख़ुद पर निवेश होने से व्यापार में हिस्सेदार कम हो जातीं हैं।


एक अन्य जवाब देखने के बाद ये और स्पष्ट कर देता हूँ- बाई बैक से प्रोमोटोर्स को फ़ायदा होता हैं क्योंकि कम्पनी के आँकड़े बेहतर होते हैं।

अगर प्रमोटर्स अपने व्यक्तिगत पैसे से शेयर ख़रीदते हैं तो उसको बाईबैक नहीं कहा जायेगा।

उम्मीद करता हूँ, जवाब लिख पाया।

Thanks 

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